फिल्म ‘हक’ के निर्माताओं ने शुरुआत से ही साफ कर दिया था कि यह मूवी जिग्ना वोरा की किताब ‘बानो भारत की बेटी’ का फिक्शनल अडेप्टेशन है और शाह बानो केस से प्रेरित है। एक ऐसा विषय जो बरसों से बहस के केंद्र में रहा है धर्म, समाज और कानून के बीच महिला के अधिकारों की लड़ाई। डायरेक्टर सुपर्ण वर्मा इस संवेदनशील विषय को भावनात्मक और यथार्थ के मेल में पिरोते हैं। फिल्म देखते वक्त एहसास होता है कि ये कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उस संघर्ष की है जो हर पीढ़ी की कई औरतों ने झेला है। फिल्म की कहानी कैसी है? शाजिया बानो (यामी गौतम) की जिंदगी उसके पति अब्बास खान (इमरान हाशमी), दो बेटों और एक बेटी के साथ गुजर रही होती है, लेकिन जब अब्बास दूसरी शादी कर लेता है और शाजिया को बच्चों सहित छोड़ देता है, तो उसका संसार बिखर जाता है। शुरुआत में अब्बास बच्चों के खर्चे का वादा करता है, लेकिन जब वह भी बंद हो जाता है, तो शाजिया चुप नहीं रहती वह अदालत जाने का कदम उठाती है। उसका यह कदम समाज में हलचल मचा देता है। जवाब में अब्बास उसे चुप कराने के लिए तीन तलाक बोल देता है। जो शुरुआत में एक घर की चारदीवारी तक सीमित थी, वही लड़ाई धीरे-धीरे धार्मिक रंग और सामाजिक आयाम लेने लगती है। अदालत, समाज और धर्म की व्याख्याओं के बीच शाजिया की आवाज़ अब सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि हर उस औरत के लिए उठने लगती है जो अपने अधिकारों और आत्मसम्मान के लिए खड़ी होना चाहती है। फिल्म की कहानी आगे चलकर एक राष्ट्रीय बहस का रूप लेती है और सवाल छोड़ जाती है कि क्या आज भी महिलाओं को समाज में वह स्थान मिला है जिसकी वे हकदार हैं। फिल्म में एक्टिंग कैसी की गई?
यामी गौतम ने शाजिया के किरदार में जान डाल दी है। उनके चेहरे के भाव, आंखों की नमी और संवादों में दृढ़ता सब कुछ इतना सच्चा लगता है कि लगता है उन्होंने इस किरदार को निभाया नहीं, जिया है। इमरान हाशमी ने अब्बास खान के किरदार में अपनी एक्टिंग की परिपक्वता दिखाई है और साबित किया है कि वो एक ऐसे एक्टर हैं जो अपने रोल की सीमाओं में रहकर भी असर छोड़ जाते हैं। शीबा चड्ढा बतौर वकील बेला जैन और दानिश हुसैन शाजिया के पिता के रूप में फिल्म की रीढ़ हैं। दोनों का काम गहराई और सादगी लिए हुए है। फिल्म का निर्देशन व तकनीकी पक्ष कैसा है? सुपर्ण वर्मा का डायरेक्शन इस फिल्म की आत्मा है। इतना सेंसिटिव और थॉट-प्रोवोकिंग टॉपिक विषय चुनना और उसे बिना ओवरड्रामा के सच्चाई के साथ पेश करना आसान नहीं था। फिल्म का ट्रीटमेंट रॉ और रियल है। टोन, सेट, लोकेशन और सिनेमैटोग्राफी में उस दौर (1980 के दशक) का एहसास बखूबी झलकता है। पहला हाफ थोड़ा स्लो फील होता है, लेकिन दूसरे हाफ में मूवी पकड़ बना लेती है और दर्शकों को अंत तक बांधे रखती है। कोर्टरूम ड्रामा के बावजूद यह फिल्म कहीं से भी टिपिकल बॉलीवुड ट्रैक पर नहीं जाती, यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? विशाल मिश्रा का म्यूजिक फिल्म की आत्मा के साथ मेल खाता है। गाने स्वीट हैं और सिचुएशन से पूरी तरह कनेक्टेड, हालांकि इमरान हाशमी के पिछले कामों की तरह यहां रोमांटिक चार्टबस्टर नहीं हैं, लेकिन बैकग्राउंड स्कोर इमोशंस को डीप बना देता है और गहराई देता है। क्यों देखें यह फिल्म?
‘हक’ एक ऐसी फिल्म है जो आपको भीतर तक झकझोर देती है। यामी गौतम और इमरान हाशमी की शानदार अदाकारी के साथ यह फिल्म न सिर्फ एक महिला की कानूनी लड़ाई दिखाती है, बल्कि समाज के आईने में हमारे सोचने के तरीके पर भी सवाल उठाती है। जो लोग सिनेमा में भावना, बहस और बदलाव की लहर महसूस करना चाहते हैं उनके लिए ‘हक’ एक जरूरी फिल्म है।
फिल्म रिव्यू – ‘हक’:यामी गौतम ने किरदार नहीं निभाया, उसे जिया; फिल्म औरत के आत्मसम्मान की करती है बात, जानिए कैसी है मूवी


