बिहार विधानसभा चुनाव के दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, बीजेपी का कैंपेन आक्रामक होता जा रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक, BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्री से लेकर लोकप्रिय कलाकार तक, सभी को बिहार के चुनावी मैदान में उतार दिया गया है। पहले फेज के प्रचार के लिए अब 5 दिन से भी कम का समय बचा है। जबकि दूसरे फेज के लिए 11 दिन का समय शेष है। इस दौरान प्रधानमंत्री बिहार में रोड शो करने के साथ 12-15 सभाएं कर सकते हैं। अमित शाह लगातार बिहार में कैंप कर रहे हैं। चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान यहां डेरा डाले हुए हैं। आखिर बिहार में BJP की प्लानिंग क्या है? पार्टी इतनी अग्रेसिव कैंपेनिंग क्यों कर रही है? किस आधार पर नेताओं की रैली प्लान की जा रही है? नेताओं की रैलियों को कौन तय कर रहा है? इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में समझिए क्या है BJP का मिशन बिहार… 3 पॉइंट में समझिए भाजपा कैंपेनिंग में आक्रामक क्यों 1. बिहार में BJP को सबसे बड़ी पार्टी बनाने की कोशिश BJP इस बार बिहार में केवल चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ रही है। बीजेपी की कोशिश है कि वो बिहार में नंबर वन पार्टी बने। अमित शाह ने भी अपने नेताओं को टास्क दिया है कि इस बार पार्टी अपनी 80-90 फीसदी सीटें जीतना चाहती है। यानी कि पार्टी 80-90 सीटें जीतना चाह रही है। पिछले 20 साल के आंकड़ों को देखें तो आज तक बीजेपी बिहार में कभी नंबर वन पार्टी नहीं बनी है। पार्टी 2010 में 102 सीटों पर लड़कर 91 सीटें जीती जरूर थी, लेकिन उस वक्त भी पार्टी बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी नहीं बनी थी। तब भी जदयू, बीजेपी से बड़ी थी। इसी तरह पिछले विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा था, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी राजद ही बनी थी। बीजेपी 74 सीटें जीतीं थी तो राजद 75 सीटें जीतीं थी। 2. सरकार के खिलाफ न प्रो और न एंटी इनकंबेंसी बीजेपी के एक्शन प्लान में डेटा की बड़ी भूमिका होती है। ग्राउंड फीडबैक के आधार पर ही पार्टी कोई निर्णय लेती है। बीजेपी की सूत्रों की मानें तो पार्टी की तरफ से कराए गए सर्वे में ये बात निकल कर सामने आ रही है कि ग्राउंड पर सरकार के खिलाफ न तो प्रो इनकंबेंसी है और न ही एंटी इनकंबेंसी है। अलग-अलग सर्वे एजेंसियों की तरफ से जारी सर्वे रिपोर्ट भी इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं। सर्वे एजेंसी पॉलिटिकल वाइब की तरफ से 25 अक्टूबर को जारी किए गए लेटेस्ट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों गठबंधन के बीच इस बार कांटे की टक्कर है। 34.7% पब्लिक ने महागठबंधन को तो 34.4% पब्लिक ने एनडीए के पक्ष में अपना समर्थन दिया है। ये आंकड़ा हर सप्ताह बदल रहे हैं। ऐसे में अब BJP जंगलराज, भ्रष्टाचार और लालू राज का डर दिखाकर माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। यही वजह है कि BJP की पूरी टॉप लीडरशिप अपनी विकास योजनाओं से ज्यादा जंगलराज के मुद्दों को बार-बार उठा रही है। 3. लोकल और पीके फैक्टर के कारण बिगड़ा समीकरण इसे एक उदाहरण से समझिए। दानापुर से जन सुराज की तरफ से अखिलेश कुमार और मुटुर शाह को कैंडिडेट बनाया गया था। इस सीट पर पिछले तीन चुनाव से यादव वर्सेज यादव का ही मुकाबला होते आ रहा था। जन सुराज ने यहां वैश्य कैंडिडेट को उतार कर लोकल लेवल पर पूरे जातीय समीकरण को ही बिगाड़ दिया था। नॉमिनेशन के आखिर दिन BJP ने मुटुर शाह को अपने पाले में कर लिया। प्रशांत किशोर जातियों का ये प्रयोग कई सीटों पर कर रहे हैं। प्रशांत किशोर के अलावा कई सीटों पर बागियों ने पार्टियों के पूरे समीकरण को बिगाड़ दिया है। यही कारण है कि BJP अपनी तरफ से किसी प्रकार का कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। अब 3 पॉइंट में समझिए अमित शाह का मिशन बिहार… 1. अमित शाह ने संभाली बिहार की कमान बिहार में BJP के चुनाव प्रचार की कमान खुद अमित शाह संभाले हुए हैं। गठबंधन में सीट शेयरिंग से लेकर टिकट कटने से नाराज नेताओं को बागी होने से मनाने तक, सबकुछ उन्होंने खुद हैंडल किया। अब बिहार में किनकी रैली कहां होगी और किस नेता की कितनी सभा होगी, यह भी अमित शाह ही तय कर रहे हैं। यही कारण है कि पिछले 21 दिन में वे 4-5 बार बिहार आ चुके हैं। अब तक तीन बार वे तीन-तीन दिन तक बिहार में कैंप कर चुके हैं। लगातार अलग-अलग जिलों में सभाएं कर रहे हैं। टॉप लीडरशिप से लेकर बूथ लेवल के लीडर तक, सभी से डायरेक्ट कनेक्ट हो रहे हैं। 2. क्लस्टर और बूथ स्तर से फीडबैक के आधार पर एक्शन बिहार को साधने के लिए अमित शाह ने पूरे बिहार को 45 क्लस्टर में बांटा है। इन क्लस्टर में पार्टी की एक्टिविटी और ग्राउंड लेवल पर फीडबैक के लिए अलग-अलग राज्यों के संगठन मंत्री की मोर्चेबंदी की है। हर क्लस्टर में एक टीम बनाई गई है, इसमें बीजेपी के संगठन मंत्री के अलावा केंद्रीय मंत्रियों, अलग-अलग राज्यों के विधायकों के साथ उस इलाके के लोकल नेताओं को भी शामिल किया गया है। इन्हें लोकल लेवल पर पॉलिटिकल माहौल भांपने से लेकर बूथ लेवल के नेताओं को मोटिवेट करने की जिम्मेदारी दी गई है। ये बूथ लेवल के नेताओं से लेकर अमित शाह के साथ सीधे संपर्क में हैं। इन्हीं के फीडबैक के आधार पर पार्टी का एक्शन प्लान तैयार तैयार किया जा रहा है। इस आधार पर तैयार किया गया है क्लस्टर BJP की तरफ से एक लोकसभा को एक क्लस्टर बनाया गया है। इस हिसाब से 40 लोकसभा क्षेत्र को 40 क्लस्टर में बांटा गया है। बिहार की एक लोकसभा में औसतन विधानसभा की 6 सीटें होती हैं। यानि एक क्लस्टर में काम कर रहे नेता के ऊपर 6 जिले की जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा पॉलिटिकल पार्टियों की तरफ से पूरे बिहार को 7 पॉलिटिकल जोन में भी बांटा गया है। इस हिसाब से भी नेताओं की जिम्मेदारी निर्धारित की गई हैं। बीजेपी ने सात जोन में अलग प्रभारी नियुक्त किए हैं। जो 40 क्लस्टर की रिपोर्ट ले रहे हैं। 3. केवल जीत जरूरी नहीं स्ट्राइक रेट पर फोकस अमित शाह ने 15 अक्टूबर को पटना में स्टेट लीडरशिप की मीटिंग में स्पष्ट कर दिया था कि इस बार चुनाव में केवल जीत जरूरी नहीं है बल्कि पार्टी का फोकस स्ट्राइक रेट को बेहतर करने की है। अमित शाह ने नेताओं को टास्क दिया है कि इस बार पार्टी जितने सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसका 80 फीसदी से ज्यादा सीटें जीतनी हैं। दरअसल BJP की कोशिश इस बार गठबंधन में बड़ा भाई या बराबर की हिस्सेदारी हासिल करने की है। BJP के प्रदेश स्तर के एक नेता बताते हैं,’चुनाव बाद गठबंधन में बारगेनिंग तभी संभव है, जब आपके पास पर्याप्त संख्या में सीटें हों, बिना इसके ये सब संभव नहीं है। पार्टी की प्लानिंग भी यही है। 2010 में 89 फीसदी स्ट्राइक रेट का रिकॉर्ड ऐसा नहीं है कि अमित शाह कोई नया रिकॉर्ड हासिल करना चाहते हैं। वे अपने पुराने नंबर को हासिल करने का लक्ष्य तय किए हैं। दरअसल, 2010 के चुनाव में BJP का स्ट्राइक रेट 89.21 फीसदी का रहा है। तब पार्टी 102 सीटों पर लड़ी थी और 91 सीटें जीतने में सफल रही थी। ये BJP का अब तक बेस्ट परफॉर्मेंस रहा है। इसके बाद इस नंबर को पार्टी कभी छूने में सफल नहीं हो पाई है। 2015 में जब नीतीश कुमार NDA गठबंधन से हटे थे तब पार्टी का स्ट्राइक रेट गिरकर 33.75 फीसदी पर आ गया था। 2020 में जब नीतीश साथ आए तो ये बढ़कर 67.27 फीसदी पर पहुंचा था। अब पार्टी एक बार फिर से अपना बेस्ट हासिल करना चाहती है। अब 2 पॉइंट्स में समझिए किस आधार पर तय हो रही नेताओं की रैलियां… 1. जिन जिलों में सबसे ज्यादा पोटेंशियल वहां PM की रैली BJP की तरफ से प्लांड तरीके से PM की रैली कराई जा रही है। इसकी शुरुआत उन्होंने समस्तीपुर से की थी जहां, 10 विधानसभा में NDA के पास 5 सीटें हैं। मौजूदा चुनाव में यहां की 10 सीटों में 7 सीटों पर जदयू चुनाव लड़ रही है। यानी कि JDU की ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी वहां PM की सभा हुई। BJP सूत्रों की मानें तो PM की रैली उन जिलों और इलाकों में निर्धारित की गई है, जहां पार्टी को सबसे ज्यादा पोटेंशियल दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि समस्तीपुर के बाद बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, छपरा में उनकी रैली कराई गई है। पटना में रोड शो, नवादा और सहरसा में उनकी रैली प्रस्तावित है। ये सारे जिले वैसे हैं, जहां NDA और महागठबंधन के बीच बराबर का मुकाबला है। 2. जातीय समीकरण के हिसाब से मुख्यमंत्रियों की रैली केंद्रीय मंत्रियों और BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी बिहार में उतारा गया है। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव, दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता, हरियाणा के सीएम नायब सैनी समेत अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी रैली कराई जा रही है। BJP सूत्रों की मानें तो इन बड़े नेताओं की रैली के लिए जिला का चयन काफी प्लानिंग के तहत किया जा रहा है। इनकी रैली के लिए दो चीजों पर फोकस किया जा रहा है। पहला- कहां इनकी रैली की डिमांड है और दूसरा- कहां ये जातीय समीकरण के हिसाब से फिट बैठते हैं। बिहार में सबसे ज्यादा डिमांड पड़ोसी राज्य यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की है। पार्टी इनका इस्तेमाल उन सीटों पर कर रही है, जहां जातीय समीकरण के साथ हिंदुत्व के सहारे वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। इसी तरह मोहन यादव की सभा बांका, भागलपुर या राज्य के उन सीटों पर कराया जा रहा है, जहां यादव वोटों को कुछ हद तक तोड़ा जा सके। इनके सहारे पार्टी ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि BJP यादव जाति के नेताओं को भी CM बना सकती है। बिहार की एक बड़ी आबादी दिल्ली में रहती है। ऐसे में दिल्ली की CM रेखा गुप्ता के सहारे न केवल महिला वोटर्स को लुभाने की कोशिश है, बल्कि इनकी सभाओं के लिए उन इलाकों का चयन किया जा रहा है, जहां के ज्यादातर लोग दिल्ली में रहते हैं। नेताओं की फौज उतारना बीजेपी की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स- एक्सपर्ट सीनियर जर्नलिस्ट अवधेश कुमार बताते हैं, ‘बीजेपी के इतने नेताओं का आना बिहार में कोई आश्चर्यजनक नहीं है। बीजेपी चुनाव को चुनाव की तरह लड़ती है। हर चुनाव में पूरे संसाधन को इस्तेमाल करती है। उनके राजनीति की शैली और संस्कृति यही है। बीजेपी के नेता पहले भी आए हैं, जबकि राजद राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। तेजस्वी के अलावा किसी नेता में राज्यव्यापी पहुंच नहीं है। वहीं, कांग्रेस के पास नेता हैं भी तो वे बिहार आने में देरी कर चुके हैं। हम नगर निगम से लोकसभा का चुनाव तक स्ट्रेटजी से लड़ते हैं- BJP बीजेपी प्रवक्ता रवि त्रिपाठी ने बताया, बीजेपी ऐसे ही चुनाव लड़ती है। हैदराबाद का नगर निगम चुनाव हो या बिहार का विधानसभा चुनाव। हर जगह हम पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतरते हैं। आधे मन से कहीं चुनाव नहीं लड़ते हैं। इसका नतीजा भी दिखता है। हर मुख्यमंत्री बीजेपी का कार्यकर्ता भी है। इसके कारण चुनाव में बीजेपी अपने हर मुख्यमंत्री को कार्यकर्ता के रूप में इस्तेमाल करती है। योगी आदित्यनाथ के आने से जिस इलाके में लाभ होगा, उनकी रैली उस इलाके में कराई जाती है। मोहन यादव के आने से किस इलाके में फायदा होगा, फायदे के हिसाब कैंपेन कराया जाता है। अमित शाह हमारे चाणक्य हैं। हम उनकी स्ट्रैटजी पर काम करते हैं। उनकी स्ट्रैटजी का लोहा मानते हैं। वे खुद भी मेहनत करते हैं और दूसरे से भी उतना ही मेहनत कराते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, बीजेपी का कैंपेन आक्रामक होता जा रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक, BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्री से लेकर लोकप्रिय कलाकार तक, सभी को बिहार के चुनावी मैदान में उतार दिया गया है। पहले फेज के प्रचार के लिए अब 5 दिन से भी कम का समय बचा है। जबकि दूसरे फेज के लिए 11 दिन का समय शेष है। इस दौरान प्रधानमंत्री बिहार में रोड शो करने के साथ 12-15 सभाएं कर सकते हैं। अमित शाह लगातार बिहार में कैंप कर रहे हैं। चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान यहां डेरा डाले हुए हैं। आखिर बिहार में BJP की प्लानिंग क्या है? पार्टी इतनी अग्रेसिव कैंपेनिंग क्यों कर रही है? किस आधार पर नेताओं की रैली प्लान की जा रही है? नेताओं की रैलियों को कौन तय कर रहा है? इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में समझिए क्या है BJP का मिशन बिहार… 3 पॉइंट में समझिए भाजपा कैंपेनिंग में आक्रामक क्यों 1. बिहार में BJP को सबसे बड़ी पार्टी बनाने की कोशिश BJP इस बार बिहार में केवल चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ रही है। बीजेपी की कोशिश है कि वो बिहार में नंबर वन पार्टी बने। अमित शाह ने भी अपने नेताओं को टास्क दिया है कि इस बार पार्टी अपनी 80-90 फीसदी सीटें जीतना चाहती है। यानी कि पार्टी 80-90 सीटें जीतना चाह रही है। पिछले 20 साल के आंकड़ों को देखें तो आज तक बीजेपी बिहार में कभी नंबर वन पार्टी नहीं बनी है। पार्टी 2010 में 102 सीटों पर लड़कर 91 सीटें जीती जरूर थी, लेकिन उस वक्त भी पार्टी बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी नहीं बनी थी। तब भी जदयू, बीजेपी से बड़ी थी। इसी तरह पिछले विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा था, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी राजद ही बनी थी। बीजेपी 74 सीटें जीतीं थी तो राजद 75 सीटें जीतीं थी। 2. सरकार के खिलाफ न प्रो और न एंटी इनकंबेंसी बीजेपी के एक्शन प्लान में डेटा की बड़ी भूमिका होती है। ग्राउंड फीडबैक के आधार पर ही पार्टी कोई निर्णय लेती है। बीजेपी की सूत्रों की मानें तो पार्टी की तरफ से कराए गए सर्वे में ये बात निकल कर सामने आ रही है कि ग्राउंड पर सरकार के खिलाफ न तो प्रो इनकंबेंसी है और न ही एंटी इनकंबेंसी है। अलग-अलग सर्वे एजेंसियों की तरफ से जारी सर्वे रिपोर्ट भी इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं। सर्वे एजेंसी पॉलिटिकल वाइब की तरफ से 25 अक्टूबर को जारी किए गए लेटेस्ट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों गठबंधन के बीच इस बार कांटे की टक्कर है। 34.7% पब्लिक ने महागठबंधन को तो 34.4% पब्लिक ने एनडीए के पक्ष में अपना समर्थन दिया है। ये आंकड़ा हर सप्ताह बदल रहे हैं। ऐसे में अब BJP जंगलराज, भ्रष्टाचार और लालू राज का डर दिखाकर माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। यही वजह है कि BJP की पूरी टॉप लीडरशिप अपनी विकास योजनाओं से ज्यादा जंगलराज के मुद्दों को बार-बार उठा रही है। 3. लोकल और पीके फैक्टर के कारण बिगड़ा समीकरण इसे एक उदाहरण से समझिए। दानापुर से जन सुराज की तरफ से अखिलेश कुमार और मुटुर शाह को कैंडिडेट बनाया गया था। इस सीट पर पिछले तीन चुनाव से यादव वर्सेज यादव का ही मुकाबला होते आ रहा था। जन सुराज ने यहां वैश्य कैंडिडेट को उतार कर लोकल लेवल पर पूरे जातीय समीकरण को ही बिगाड़ दिया था। नॉमिनेशन के आखिर दिन BJP ने मुटुर शाह को अपने पाले में कर लिया। प्रशांत किशोर जातियों का ये प्रयोग कई सीटों पर कर रहे हैं। प्रशांत किशोर के अलावा कई सीटों पर बागियों ने पार्टियों के पूरे समीकरण को बिगाड़ दिया है। यही कारण है कि BJP अपनी तरफ से किसी प्रकार का कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। अब 3 पॉइंट में समझिए अमित शाह का मिशन बिहार… 1. अमित शाह ने संभाली बिहार की कमान बिहार में BJP के चुनाव प्रचार की कमान खुद अमित शाह संभाले हुए हैं। गठबंधन में सीट शेयरिंग से लेकर टिकट कटने से नाराज नेताओं को बागी होने से मनाने तक, सबकुछ उन्होंने खुद हैंडल किया। अब बिहार में किनकी रैली कहां होगी और किस नेता की कितनी सभा होगी, यह भी अमित शाह ही तय कर रहे हैं। यही कारण है कि पिछले 21 दिन में वे 4-5 बार बिहार आ चुके हैं। अब तक तीन बार वे तीन-तीन दिन तक बिहार में कैंप कर चुके हैं। लगातार अलग-अलग जिलों में सभाएं कर रहे हैं। टॉप लीडरशिप से लेकर बूथ लेवल के लीडर तक, सभी से डायरेक्ट कनेक्ट हो रहे हैं। 2. क्लस्टर और बूथ स्तर से फीडबैक के आधार पर एक्शन बिहार को साधने के लिए अमित शाह ने पूरे बिहार को 45 क्लस्टर में बांटा है। इन क्लस्टर में पार्टी की एक्टिविटी और ग्राउंड लेवल पर फीडबैक के लिए अलग-अलग राज्यों के संगठन मंत्री की मोर्चेबंदी की है। हर क्लस्टर में एक टीम बनाई गई है, इसमें बीजेपी के संगठन मंत्री के अलावा केंद्रीय मंत्रियों, अलग-अलग राज्यों के विधायकों के साथ उस इलाके के लोकल नेताओं को भी शामिल किया गया है। इन्हें लोकल लेवल पर पॉलिटिकल माहौल भांपने से लेकर बूथ लेवल के नेताओं को मोटिवेट करने की जिम्मेदारी दी गई है। ये बूथ लेवल के नेताओं से लेकर अमित शाह के साथ सीधे संपर्क में हैं। इन्हीं के फीडबैक के आधार पर पार्टी का एक्शन प्लान तैयार तैयार किया जा रहा है। इस आधार पर तैयार किया गया है क्लस्टर BJP की तरफ से एक लोकसभा को एक क्लस्टर बनाया गया है। इस हिसाब से 40 लोकसभा क्षेत्र को 40 क्लस्टर में बांटा गया है। बिहार की एक लोकसभा में औसतन विधानसभा की 6 सीटें होती हैं। यानि एक क्लस्टर में काम कर रहे नेता के ऊपर 6 जिले की जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा पॉलिटिकल पार्टियों की तरफ से पूरे बिहार को 7 पॉलिटिकल जोन में भी बांटा गया है। इस हिसाब से भी नेताओं की जिम्मेदारी निर्धारित की गई हैं। बीजेपी ने सात जोन में अलग प्रभारी नियुक्त किए हैं। जो 40 क्लस्टर की रिपोर्ट ले रहे हैं। 3. केवल जीत जरूरी नहीं स्ट्राइक रेट पर फोकस अमित शाह ने 15 अक्टूबर को पटना में स्टेट लीडरशिप की मीटिंग में स्पष्ट कर दिया था कि इस बार चुनाव में केवल जीत जरूरी नहीं है बल्कि पार्टी का फोकस स्ट्राइक रेट को बेहतर करने की है। अमित शाह ने नेताओं को टास्क दिया है कि इस बार पार्टी जितने सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसका 80 फीसदी से ज्यादा सीटें जीतनी हैं। दरअसल BJP की कोशिश इस बार गठबंधन में बड़ा भाई या बराबर की हिस्सेदारी हासिल करने की है। BJP के प्रदेश स्तर के एक नेता बताते हैं,’चुनाव बाद गठबंधन में बारगेनिंग तभी संभव है, जब आपके पास पर्याप्त संख्या में सीटें हों, बिना इसके ये सब संभव नहीं है। पार्टी की प्लानिंग भी यही है। 2010 में 89 फीसदी स्ट्राइक रेट का रिकॉर्ड ऐसा नहीं है कि अमित शाह कोई नया रिकॉर्ड हासिल करना चाहते हैं। वे अपने पुराने नंबर को हासिल करने का लक्ष्य तय किए हैं। दरअसल, 2010 के चुनाव में BJP का स्ट्राइक रेट 89.21 फीसदी का रहा है। तब पार्टी 102 सीटों पर लड़ी थी और 91 सीटें जीतने में सफल रही थी। ये BJP का अब तक बेस्ट परफॉर्मेंस रहा है। इसके बाद इस नंबर को पार्टी कभी छूने में सफल नहीं हो पाई है। 2015 में जब नीतीश कुमार NDA गठबंधन से हटे थे तब पार्टी का स्ट्राइक रेट गिरकर 33.75 फीसदी पर आ गया था। 2020 में जब नीतीश साथ आए तो ये बढ़कर 67.27 फीसदी पर पहुंचा था। अब पार्टी एक बार फिर से अपना बेस्ट हासिल करना चाहती है। अब 2 पॉइंट्स में समझिए किस आधार पर तय हो रही नेताओं की रैलियां… 1. जिन जिलों में सबसे ज्यादा पोटेंशियल वहां PM की रैली BJP की तरफ से प्लांड तरीके से PM की रैली कराई जा रही है। इसकी शुरुआत उन्होंने समस्तीपुर से की थी जहां, 10 विधानसभा में NDA के पास 5 सीटें हैं। मौजूदा चुनाव में यहां की 10 सीटों में 7 सीटों पर जदयू चुनाव लड़ रही है। यानी कि JDU की ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी वहां PM की सभा हुई। BJP सूत्रों की मानें तो PM की रैली उन जिलों और इलाकों में निर्धारित की गई है, जहां पार्टी को सबसे ज्यादा पोटेंशियल दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि समस्तीपुर के बाद बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, छपरा में उनकी रैली कराई गई है। पटना में रोड शो, नवादा और सहरसा में उनकी रैली प्रस्तावित है। ये सारे जिले वैसे हैं, जहां NDA और महागठबंधन के बीच बराबर का मुकाबला है। 2. जातीय समीकरण के हिसाब से मुख्यमंत्रियों की रैली केंद्रीय मंत्रियों और BJP शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी बिहार में उतारा गया है। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव, दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता, हरियाणा के सीएम नायब सैनी समेत अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी रैली कराई जा रही है। BJP सूत्रों की मानें तो इन बड़े नेताओं की रैली के लिए जिला का चयन काफी प्लानिंग के तहत किया जा रहा है। इनकी रैली के लिए दो चीजों पर फोकस किया जा रहा है। पहला- कहां इनकी रैली की डिमांड है और दूसरा- कहां ये जातीय समीकरण के हिसाब से फिट बैठते हैं। बिहार में सबसे ज्यादा डिमांड पड़ोसी राज्य यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की है। पार्टी इनका इस्तेमाल उन सीटों पर कर रही है, जहां जातीय समीकरण के साथ हिंदुत्व के सहारे वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। इसी तरह मोहन यादव की सभा बांका, भागलपुर या राज्य के उन सीटों पर कराया जा रहा है, जहां यादव वोटों को कुछ हद तक तोड़ा जा सके। इनके सहारे पार्टी ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि BJP यादव जाति के नेताओं को भी CM बना सकती है। बिहार की एक बड़ी आबादी दिल्ली में रहती है। ऐसे में दिल्ली की CM रेखा गुप्ता के सहारे न केवल महिला वोटर्स को लुभाने की कोशिश है, बल्कि इनकी सभाओं के लिए उन इलाकों का चयन किया जा रहा है, जहां के ज्यादातर लोग दिल्ली में रहते हैं। नेताओं की फौज उतारना बीजेपी की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स- एक्सपर्ट सीनियर जर्नलिस्ट अवधेश कुमार बताते हैं, ‘बीजेपी के इतने नेताओं का आना बिहार में कोई आश्चर्यजनक नहीं है। बीजेपी चुनाव को चुनाव की तरह लड़ती है। हर चुनाव में पूरे संसाधन को इस्तेमाल करती है। उनके राजनीति की शैली और संस्कृति यही है। बीजेपी के नेता पहले भी आए हैं, जबकि राजद राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। तेजस्वी के अलावा किसी नेता में राज्यव्यापी पहुंच नहीं है। वहीं, कांग्रेस के पास नेता हैं भी तो वे बिहार आने में देरी कर चुके हैं। हम नगर निगम से लोकसभा का चुनाव तक स्ट्रेटजी से लड़ते हैं- BJP बीजेपी प्रवक्ता रवि त्रिपाठी ने बताया, बीजेपी ऐसे ही चुनाव लड़ती है। हैदराबाद का नगर निगम चुनाव हो या बिहार का विधानसभा चुनाव। हर जगह हम पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतरते हैं। आधे मन से कहीं चुनाव नहीं लड़ते हैं। इसका नतीजा भी दिखता है। हर मुख्यमंत्री बीजेपी का कार्यकर्ता भी है। इसके कारण चुनाव में बीजेपी अपने हर मुख्यमंत्री को कार्यकर्ता के रूप में इस्तेमाल करती है। योगी आदित्यनाथ के आने से जिस इलाके में लाभ होगा, उनकी रैली उस इलाके में कराई जाती है। मोहन यादव के आने से किस इलाके में फायदा होगा, फायदे के हिसाब कैंपेन कराया जाता है। अमित शाह हमारे चाणक्य हैं। हम उनकी स्ट्रैटजी पर काम करते हैं। उनकी स्ट्रैटजी का लोहा मानते हैं। वे खुद भी मेहनत करते हैं और दूसरे से भी उतना ही मेहनत कराते हैं।


