पाकिस्तानी सीमा से सटे जैसलमेर जिले में होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि परंपरा, भक्ति और राजसी शान का उत्सव भी माना जाता है। यहां की होली को खास बनाती है बादशाह-शहजादे की परंपरा, जो सोनार दुर्ग में धुलंडी के दिन जीवंत होती है। इस दिन बादशाह और शहजादा के रूप में सजे लोग पारंपरिक वेशभूषा में निकलते हैं और ‘बादशाही बरकार, शहजादा समलाम’ के जयकारों से माहौल गूंज उठता है। कहा जाता है कि सदियों पहले एक ब्राह्मण धर्म परिवर्तन के भय से जैसलमेर आया था। संयोग से वह दिन होली का था। उसे बादशाह का रूप देकर तख्त पर बैठा दिया, ताकि दुश्मन यह मान लें कि वह धर्म बदल चुका है। यह युक्ति सफल रही और तभी से यह परंपरा हर होली पर निभाई जाती है। इन्हें मिलता है बादशाह बनने का सौभाग्य बादशाह बनने का सौभाग्य केवल पुष्करणा ब्राह्मण समाज के व्यास जाति के विवाहित व्यक्ति को ही मिलता है। उसके साथ शहजादों के रूप में बच्चे भी होते हैं। बादशाह को पारंपरिक पोशाक पहनाई जाती है और उसे सोनार दुर्ग स्थित बिल्ला पाड़ा में बनाए गए दरबार में बैठाया जाता है।
पूर्व बादशाहों के अनुभव
पूर्व में बादशाह बनने वाले विकास व्यास बताते हैं कि यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि गौरव का क्षण होता है। जब लोग बादशाह सलामत के जयकारे लगाते हैं, तो लगता है जैसे इतिहास जीवंत हो गया हो। दूसरे पूर्व बादशाह अजय व्यास कहते हैं कि सोनार दुर्ग में बैठकर लोगों की भीड़ को देखना और परंपरा को निभाना अविस्मरणीय अनुभव है। खासकर जब लक्ष्मीनाथ मंदिर पर जाकर घोषणा की जाती है, तो गर्व की अनुभूति होती है।
निकली है बादशाह की सवारी
शाही परंपरा की झलक दुर्ग के भीतर बादशाही दरबार में लोगों की भीड़ उमड़ती है। होली के रंगों में सराबोर लोग तबले की थाप पर नाचते-गाते हुए बादशाह के दरबार में शामिल होते हैं। इसके बाद बादशाह और शहजादों की सवारी निकलती है, जो लक्ष्मीनाथ मंदिर तक जाती है। वहां बादशाह से पूछा जाता है – बादशाह क्या फरमाते हैं? इस परंपरा के तहत बादशाह अपनी श्रद्धानुसार दान या गोठ की घोषणा करता है। जैसलमेर की होली पर्व की अनूठी परंपरा को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक जैसलमेर आते हैं।
फिल्मी दृश्य जैसी अनुभूति
मैंने दुनिया में कई होलियां देखी हैं, लेकिन जैसलमेर की होली का राजसी अंदाज अनोखा है। सोनार दुर्ग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और बादशाह की सवारी किसी फिल्मी दृश्य जैसी लगती है।
-योहानेस श्मिट, पर्यटक, जर्मनी
संस्कृति व परंपरा का मेल
यहां की होली में केवल रंग नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा का मेल दिखता है। जब बादशाह दरबार में बैठते हैं और सवारी निकलती है, तो ऐसा लगता है जैसे समय पीछे चला गया हो। -क्लारा मार्टिन, पर्यटक, फ्रांस
निराली है जैसाण होली
मैंने राजस्थान में कई जगहों पर होली मनाई, लेकिन जैसलमेर की होली का अंदाज निराला है। यहां होली मनाने आया हूं, परिवार भी साथ है। काफी उत्साहित हूं। पहले भी यहां आ चुका हूं।
-रोहित अरोड़ा, पर्यटक, नई दिल्ली
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