टोंक शहर में 18 साल से हो रहा कला उत्सव:500 अंतरराष्ट्रीय चित्रकार जुटते हैं, इस बार रूस से भी आएंगे कलाकार

टोंक शहर में 18 साल से हो रहा कला उत्सव:500 अंतरराष्ट्रीय चित्रकार जुटते हैं, इस बार रूस से भी आएंगे कलाकार

रचनात्मक सोच के साथ यदि कुछ कर गुजरने की लगन हो तो एक नया अध्याय शुरू होकर ही रहता है। ऐसा ही एक अध्याय कला के क्षेत्र मे युवा कलाकारों की सोच ने नवाबों की नगरी कहे जाने वाले टोंक शहर में कर दिखाया है। बात आज से करीब 18 साल पहले की है। टोंक शहर के कुछ युवा कलाकार के मन मस्तिष्क में एक परिकल्पना हिलोरे खाने लगी और उन्होंने कला के क्षेत्र में कुछ नया करने की ठानी। अपनी परिकल्पना के तहत 2007 में कलापर्व का आयोजन शुरू किया। शुरुआत में 100 कलाकार जुड़ पाए थे। हर वर्ष तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में 400-500 कलाकार देशभर से जुटते रहे हैं। पिछले दो साल से विदेशी कलाकारों का भी रुझान बढ़ा है। गौरतलब है कि उज्जैन में 2006 में एक कला कैंप में भाग लेने के लिए टोंक निवासी चित्रकार डॉ. हनुमान सिंह अपने साथियों के साथ गए थे। जहां उन्होंने कला कैंप को देखा तो उन्होंने इसकी परिकल्पना तैयार की। यह कला के क्षेत्र में राजस्थान की पहचान बनने लगा है। टोंक शहर में 18 साल से प्रतिवर्ष तीन दिवसीय कलापर्व हो रहा है। कलापर्व कलाकारों की मेहनत व लगन के बल पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। इस कला पर्व में 400- 500 कलाकार देश-विदेश के भी आने लगे हैं। चित्रकार शाइस्ता खान ने बताया कला पर्व 7 से 9 नवंबर 2025 तक होगा। इस बार रूस के कलाकार भी भाग लेंगे। महेश गुर्जर सहित अन्य चित्रकारों ने बताया कि कला के आदान-प्रदान का एक बड़ा माध्यम बन रहा है। 18 साल में इस कला पर्व में भाग लेने 8 हजार से ज्यादा कलाकार आ चुके हैं। देश के करीब सभी राज्यों से यहां कलाकार आते हैं। इस बार भी नेपाल सहित कई देशों के कलाकारों के आने की सहमति मिली है। जो नहीं आ पाएंगे, उन्हें पहले की तरह ऑनलाइन भी जोड़ा जा सकेगा। इस कला पर्व में नेपाल, यूपी, बिहार, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हिमाचल, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडू, केरल, एमपी, असम, गुजरात, पश्चिमी बंगाल सहित कई राज्यों के कलाकार आते रहे हैं। यहां चित्रकार, मूर्तिकार सहित कई अन्य कलाओं के माहिरेफन भी जुटते हैं। कार्यक्रम में प्रतियोगिता भी होती है। इसमें स्कूल, कॉलेज के छात्र-छात्राएं कैनवास पर अपनी कला के रंग उकेर कर अपना योगदान देते हैं। कलाकारों एवं कला संरक्षण प्रदान करने वाले वरिष्ठ कलाकारों का यहां पर सम्मान भी किया जाता है। बिना सरकारी सहयोग से होने वाले इस कलापर्व की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि कुछ भामाशाहों के सहयोग के साथ ही कलाकार अपने स्वयं के खर्च पर इस कला की संघर्ष यात्रा को जारी किए हुए हैं। कोरोना काल में भी ये ऑनलाइन हुआ। इस बार भी 500 से ज्यादा कलाकार लेंगे भाग इस बार आयोजकों को उम्मीद है कि कला पर्व में 500 से ज्यादा कलाकार देश-विदेश के भाग लेंगे। हालांकि इतना बड़ा आयोजन प्रतिवर्ष करना कोई आसान कार्य नहीं है। लेकिन जब कलाकारों ने ठान ही लिया है तो उनके लिए यह आयोजन मुश्किल भी नहीं रहा है, लेकिन फिर भी इस आयोजन को राज्य सरकार के सहयोग की दरकार महसूस हो रही है। ताकि युवा कलाकारों की मेहनत, लगन व हिम्मत से अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुके इस कला पर्व को अंतरराष्ट्रीय महाकुंभ में परिवर्तित किया जा सके। चित्रकला, मूर्तिकला के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर अपनी पहचान रखने वाली टोंक की कैलिग्राफी कला सहित कई लुप्त होती कलाओं को भी प्रोत्साहन मिल सके। अब तक कला की कई हस्तियां भाग ले चुकी पद्मश्री चित्रकार शाकिर अली, पद्मश्री तिलकगितई, पद्मश्री अर्जुन प्रजापति, फिल्म कलाकार ललित मोहन तिवाड़ी, राजेंद्र पाटिल, शादाब रहबर खान, अभिनेत्री नीतू कोइराला, भोजपुरी कलाकार अनिल कुमार साधू, वरिष्ठ कलाकार विद्या सागर उपाध्याय, सीएम मेहता आदि कला पर्व में भाग ले चुके हैं।

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