पाठ्य पुस्तक निगम ने इस शैक्षणिक सत्र 50 करोड़ बचाए:24 करोड़ कागजों की खरीदी में बचे, अब गुजरात भी फॉलो करेगा छत्तीसगढ़ का सिस्टम

पाठ्य पुस्तक निगम ने इस शैक्षणिक सत्र 50 करोड़ बचाए:24 करोड़ कागजों की खरीदी में बचे, अब गुजरात भी फॉलो करेगा छत्तीसगढ़ का सिस्टम

छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम (PPN) ने इस बार किताबों की हेरा-फेरी पर रोक लगाने के लिए बार कोड सिस्टम लाया था। दरअसल, पिछली दफा पुस्तक वितरण के दौरान एक बड़ा घपला सामने आया था। स्कूली बच्चों तक किताबें नहीं पहुंच पाई थी। और ये किताबें बाद में कबाड़ में मिली थी। इस बार कोड को स्कैन करना हर स्कूल के अनिवार्य था। ताकि किताबें कब पहुंची और स्पेसिफिक जिले के किस स्कूल में डिस्ट्रीब्यूट की गई, इसकी जानकारी सीधे पाठ्य पुस्तक निगम को मिल सके। अब ये मॉडल गुजरात भी अपनाने जा रहा है। गुजरात सरकार भी अपने स्कूली किताबों पर बार कोड सिस्टम लगाएगा। इसके अलावा अगले शैक्षणिक सत्र से जिन ट्रकों से किताबों का ट्रांसपोर्ट होगा, उन ट्रकों पर भी चिप लगाया जाएगा। पाठ्य पुस्तक निगम से अध्यक्ष राजा पांडेय ने भास्कर से खास बातचीत में बताया कि इस बार निगम ने लगभग 50 करोड़ रूपए बचाए हैं। इनमें 24 करोड़ तो सिर्फ कागजों की खरीदी में बचे हैं। 2 करोड़ 64 लाख किताबें छपी हैं, एक किताब की कीमत 36 रूपए ही पड़ी। जबकि पिछली बार इन किताबों की कीमत 42 रूपए से ऊपर पड़ी थी। पांडेय ने बताया कि 1784 प्राइवेट स्कूल किताबें नहीं लेकर गए, इन पर कार्रवाई करने के लिए शिक्षा विभाग से कहा जाएगा। पेपर खरीदी, मुद्रण और वितरण का सिस्टम नहीं बदलेगा वहीं कुछ समय पहले ये सलाह आई थी कि पाठ्यपुस्तक निगम एक ही वेंडर को पेपर खरीदी, मुद्रण और वितरण का ठेका दे दिया जाए। जिससे कम समय में सारा काम पूरा हो। इस समय ये कॉन्सेप्ट बिहार में ही चल रहा है। लेकिन बोर्ड की मीटिंग में ये फैसला लिया गया है कि इस सिस्टम में करप्शन ज्यादा है। इसके बाद गुजरात, दिल्ली NCERT के सिस्टम का ऑब्जर्वेशन किया गया। पाया गया कि इस सिस्टम में करप्शन के चांस कम है। साथ ही कई छोटे वेंडर्स को भी पार्टिसिपेट करने का चांस मिलता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ यही सिस्टम फॉलो करेगा न कि बिहार वाला। पांडेय ने बताया पेपर खरीदी, मुद्रण और वितरण का सिस्टम नहीं बदलेगा। अब ये समझिए कि कैसे पाठ्य पुस्तक ने इस बार 50 करोड़ बचाए पांडेय ने बताया पिछली शैक्षणिक सत्र में 2 करोड़ 84 लाख किताबें छपी थी। तब 98 रूपए प्रति किलो के हिसाब से प्रिंटिंग पेपर की खरीदी हुई थी,लगभग 12 हजार मीट्रिक टन या 12 करोड़ किलो पेपर खरीदा गया था। इस बार भी इतना ही पेपर क्वालिटी में कोई समझौता न करते हुए 78 रूपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदा गया। यानी प्रति किलो 20 रूपए बचे। इस लिहाज से करीब 24 करोड़ रूपए पाठ्य पुस्तक निगम के बच गए। इस सत्र में 2 करोड़ 64 लाख किताबें खरीदी गईं। एक किताब का मूल्य लगभग 36 रूपए ही पड़ा। जबकि पिछले सत्र में यही खर्च प्रति किताब 42 रूपए से ऊपर था। वहीं जो 1,784 स्कूल किताबें लेकर नहीं गए। इन पर कार्रवाई करने को कहा जाएगा। एक स्कूल में करीब 4000 हजार पुस्तकें पहुंचती। यानी 71 लाख किताबें बच जाने का अनुमान है। इस लिहाज से 25 करोड़ की राशि अगले शैक्षणिक सत्र में किताबों पर नहीं लगाने होंगे। यानी कुल 50 करोड़ रूपए इस बाद पाठ्य पुस्तक के सेव हो गए। शिकायतों पर बोले – हम और किताब छपवा देंगे, लेकिन डिमांड नहीं आई पांडेय से हमने कई स्कूलों को किताब नहीं मिलने के आरोप पर भी जवाब मांगा। पांडेय ने बताया PPN एक ऑटोनॉमस बाडी है, जिसका काम शैक्षणिक संस्थानों के साहित्य प्रकाशन, मुद्रण और वितरण करना है। इसके लिए उसे डीपाई और समग्र शिक्षा से फंड जारी होता है। काम के एवज में PPN 10% कमीशन लेता है। इसी से PPN के कर्मचारियों को भुगतान और उसके बाकी काम होते हैं। अब किताबों के लिए पेपर खरीदी, प्रिंटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन PPN खुद की इच्छा से नहीं करता है। यू-डाइस के रिपोर्ट के आधार पर किताबें पब्लिश होती हैं। ये रिपोर्ट यू-डाइस को वहां के जिला शिक्षा अधिकारी देते हैं। यू-डाइस ने जितनी किताबें बोली, हमने उतनी पब्लिश की है। पहले 2 करोड़ 41 लाख किताबें छपवाई गई। इसके बाद 23 लाख और छपवाई गई। यानी कुल 2 करोड़ 64 लाख किताबें इस शैक्षणिक सत्र छपी। GEM से जारी होता है टेंडर पांडेय ने बताया कि GEM के जरिए कागज खरीदी, प्रिटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए PPN टेंडर जारी करता है। हर 500 मीट्रिक टन पर कागजों की गुणवत्ता जांच की जाती है। इसे कम होने पर 2 प्रतिशत की पेनल्टी वेंडर पर लगती है। सब कुछ ट्रांसपेरेंट रहे इसलिए हर मीटर पर वेंडर को पाठ्य पुस्तक निगम और अपनी कंपनी का प्रिंट होता है। ताकि पेपर की यूनिक नेस बनी रहे और कोई दूसरा उपयोग फर्जी पब्लिकेशन न कर पाए।

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