AIMIM Party: बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ा खेला कर सकती है ओवैसी की AIMIM, जानिए सूबे में पार्टी का कितना है असर

AIMIM Party: बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ा खेला कर सकती है ओवैसी की AIMIM, जानिए सूबे में पार्टी का कितना है असर
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन ने बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरूकर दी है। पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी कर रहे हैं। बता दें कि बिहार में AIMIM 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम एक बार फिर से मुस्लिम बहुल सीटों और सीमांचल पर फोकस कर रही है। साल 2020 में पार्टी ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं इस बार पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने का दावा कर रही है।

AIMIM का इतिहास

साल 1936 में नवाब नवाज किलेदार ने AIMIM को शुरू किया था, जब हैदराबाद एक स्वतंत्र राज्य था और वहां पर नवाबों का शासन था। उस दौरान मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन सिर्फ एक सांस्कृति अंग था। लेकिन बाद में य़ह मुस्लिम लीग से जुड़ गया और पूरी तरह से राजनीतिक संगठन में बदल गया था और फिर राजनीतिक पार्टी में। AIMIM पार्टी की बागडोर ओवैसी परिवार के हाथ में उस समय आई, जब साल 1957 में इस संगठन से बैन हटाया गया था। साल 1957 में पार्टी ने नाम में ‘ऑल इंडिया’ जोड़ा और साथ ही अपने संविधान को बदला।

इसे भी पढ़ें: National Lok Janshakti Party: RLJP ने शुरू की बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी, समझिए पार्टी के समीकरण

बिहार की सियासत में AIMIM का रोल

AIMIM पार्टी बिहार में खासकर सीमांचल इलाके में उभरती हुई सियासी ताकत बन गई है। सीमांचल (किशनगंज,अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिले) में मुस्लिम आबादी ज्यादा है। वहीं पार्टी ने भी इस इलाके में अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। AIMIM का फोकस रोजगार, शिक्षा, मुस्लिम समुदाय के मुद्दे और सामाजिक न्याय पर रहता है। वहीं ओवैसी भी अपनी बेबाक बयानबाजी और सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आवाज उठाते हैं।

बिहार में AIMIM का रोल

बिहार में AIMIM महागठबंधन में शामिल हो सकती है। क्योंकि AIMIM ने कहा कि वह कम सीटों पर भी समझौता करने के लिए तैयार है। बस पार्टी की शर्त सिर्फ इतनी है कि उसे सीमांचल की अहम सीटें उसको मिलें।
वहीं अगर महागठबंधन में पार्टी की बात नहीं बनती है कि तो पार्टी अकेले या फिर किसी तीसरे मोर्चे के साथ चुनाव लड़ सकती है। हालांकि ओवैसी ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी सीमांचल और उसके बाहर भी 50 सीटों से ज्यादा लड़ने की तैयारी में है। ओवैसी के इस फैसले से सियासी समीकरण बदल सकते हैं, क्योंकि AIMIM के लड़ने से मुस्लिम वोट बंट सकते हैं।

2020 की जीत

साल 2019 में पार्टी बिहार में बहुत ज्यादा मजबूत नहीं थी। लेकिन साल 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि बाद में पार्टी के 4 विधायक तोड़ लिए गए। लेकिन पार्टी का मानना है कि जिस लोगों ने जिताया वह आज भी AIMIM के साथ खड़े हैं।
पार्टी का मानना है कि राज्य में मुसलमान और दलितों के साथ हकमारी हुई है। पार्टी नेताओं का मानना है कि दलितों और मुसलमानों पर अत्याचार के खिलाफ जितनी प्रखर आवाज ओवैसी उठाते हैं और पार्टी उठाती है, उतना कोई अन्य दल आवाज नहीं उठाता है।

निर्णायक स्थिति में हैं मुस्लिम वोटर

बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थित में हैं। इन इलाकों में 20-40% या इससे भी अधिक मुस्लिम आबादी है। बिहार की 11 सीटें हैं, जहां पर 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं 7 सीटों पर मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से ज्यादा हैं। वहीं 29 विधानसभा सीटों पर 20-30 फीसदी के बीच मुस्लिम आबादी है। सीमांचल इलाके में मुस्लिम समुदाय की आबादी 40-70 फीसदी के आसपास है। इसलिए ओवैसी की पार्टी AIMIM का सबसे ज्यादा इसी इलाके पर फोकस रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *