नोटा का बटन: चुनावी समीकरण बदलने की ताकत:2020 में हिलसा में 12 वोट से हुआ था जीत-हार, नोटा में पड़े थे 1022 वोट

नोटा का बटन: चुनावी समीकरण बदलने की ताकत:2020 में हिलसा में 12 वोट से हुआ था जीत-हार, नोटा में पड़े थे 1022 वोट

लोकतंत्र में मतदाता को दिया गया एक छोटा सा अधिकार कई बार बड़े राजनीतिक समीकरणों को बदल देता है। ईवीएम में सबसे अंतिम पंक्ति में दिखने वाला ‘नोटा’ (नन ऑफ द एबव – उपरोक्त में से कोई नहीं) का बटन इसी का प्रतीक है। यह विकल्प उन मतदाताओं के लिए है जो किसी भी उम्मीदवार को अपने मत के योग्य नहीं समझते। नालंदा जिले की ही बात करें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में हिलसा सीट पर विजय का अंतर महज 12 वोटों का था, लेकिन यहां नोटा में 1022 वोट पड़े। यानी जीत के अंतर से 85 गुना अधिक मतदाताओं ने किसी भी प्रत्याशी को अपनी पसंद का नहीं पाया। यह आंकड़ा साफ संकेत देता है कि अगर इन मतदाताओं ने किसी एक उम्मीदवार का साथ दिया होता, तो परिणाम बिल्कुल उलट हो सकता था। बिहार में एक करोड़ से अधिक नोटा वोट 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव को मिलाकर पूरे बिहार में नोटा में एक करोड़ 29 लाख वोट पड़े। यह संख्या राजनीतिक दलों के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए। कई विधानसभा क्षेत्रों में तो 5000 से अधिक वोट नोटा में डाले गए। 2020 के चुनाव में सबसे ज्यादा नोटा वोट वाल्मीकिनगर विधानसभा में डाले गए, जहां 8090 मतदाताओं ने यह विकल्प चुना। गोपालगंज के भोर में 8010 नोटा वोट पड़े, जबकि यहां जीत का अंतर महज 462 वोटों का था। कुचायकोट में भी 7656 वोट नोटा में गए। नालंदा में सुधार की कहानी 2015 के चुनाव में नालंदा जिले में नोटा वोटों की संख्या चौंकाने वाली थी। चार विधानसभा क्षेत्रों में तीन से चार प्रतिशत तक वोट नोटा में पड़े थे। नालंदा विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक 6531 नोटा वोट दर्ज किए गए। हालांकि, 2020 में इस मामले में काफी सुधार देखने को मिला। सभी विधानसभा क्षेत्रों में नोटा वोटों का प्रतिशत एक प्रतिशत से भी कम रहा। यह संकेत देता है कि मतदाताओं को अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प मिले। विधानसभा आंकड़े बताते हैं कहानी लोकतंत्र में मतदाता को दिया गया एक छोटा सा अधिकार कई बार बड़े राजनीतिक समीकरणों को बदल देता है। ईवीएम में सबसे अंतिम पंक्ति में दिखने वाला ‘नोटा’ (नन ऑफ द एबव – उपरोक्त में से कोई नहीं) का बटन इसी का प्रतीक है। यह विकल्प उन मतदाताओं के लिए है जो किसी भी उम्मीदवार को अपने मत के योग्य नहीं समझते। नालंदा जिले की ही बात करें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में हिलसा सीट पर विजय का अंतर महज 12 वोटों का था, लेकिन यहां नोटा में 1022 वोट पड़े। यानी जीत के अंतर से 85 गुना अधिक मतदाताओं ने किसी भी प्रत्याशी को अपनी पसंद का नहीं पाया। यह आंकड़ा साफ संकेत देता है कि अगर इन मतदाताओं ने किसी एक उम्मीदवार का साथ दिया होता, तो परिणाम बिल्कुल उलट हो सकता था। बिहार में एक करोड़ से अधिक नोटा वोट 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव को मिलाकर पूरे बिहार में नोटा में एक करोड़ 29 लाख वोट पड़े। यह संख्या राजनीतिक दलों के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए। कई विधानसभा क्षेत्रों में तो 5000 से अधिक वोट नोटा में डाले गए। 2020 के चुनाव में सबसे ज्यादा नोटा वोट वाल्मीकिनगर विधानसभा में डाले गए, जहां 8090 मतदाताओं ने यह विकल्प चुना। गोपालगंज के भोर में 8010 नोटा वोट पड़े, जबकि यहां जीत का अंतर महज 462 वोटों का था। कुचायकोट में भी 7656 वोट नोटा में गए। नालंदा में सुधार की कहानी 2015 के चुनाव में नालंदा जिले में नोटा वोटों की संख्या चौंकाने वाली थी। चार विधानसभा क्षेत्रों में तीन से चार प्रतिशत तक वोट नोटा में पड़े थे। नालंदा विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक 6531 नोटा वोट दर्ज किए गए। हालांकि, 2020 में इस मामले में काफी सुधार देखने को मिला। सभी विधानसभा क्षेत्रों में नोटा वोटों का प्रतिशत एक प्रतिशत से भी कम रहा। यह संकेत देता है कि मतदाताओं को अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प मिले। विधानसभा आंकड़े बताते हैं कहानी  

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