भारत के मिनी कश्मीर में खोजे जाएंगे नए ट्रैकिंग रूट:मुनस्यारी में होगा सर्वे, यहीं से पांडव स्वर्ग की यात्रा के लिए निकले थे

भारत के मिनी कश्मीर में खोजे जाएंगे नए ट्रैकिंग रूट:मुनस्यारी में होगा सर्वे, यहीं से पांडव स्वर्ग की यात्रा के लिए निकले थे

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में मुनस्यारी ट्रैकिंग के लिए नए रूट खोजे जाएंगे। दो महीने बाद इसके लिए पूरे इलाके को सर्च यानी सर्वे किया जाएगा। मुनस्यारी को देश का मिनी कश्मीर कहते हैं क्यों यहां पर हरी-भरी वादियां, ऊंचे हिमालय के पहाड़ और शांत वातावरण है, जो कश्मीर की याद दिलाते हैं। मुनस्यारी को ‘स्वर्ग का रास्ता’ कहा जाता है क्योंकि यह पौराणिक कथाओं में पांडवों के स्वर्गारोहण मार्ग से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पांडव स्वर्ग की अपनी अंतिम यात्रा पर मुनस्यारी से ही निकले थे। मुनस्यारी के पास स्थित पंचचूली पर्वत के पांच शिखरों को पांडवों का प्रतीक माना जाता है और यह भी माना जाता है कि उन्होंने अपना अंतिम भोजन यहीं पकाया था। साहसिक संस्थाएं हिमालयन शेफर्ड और लास्पा अल्पाइन ट्रेल मुनस्यारी में नए ट्रैकिंग रूट की खोज करेंगी। साहसिक यात्राओं का संचालन कराने वाली संस्था के संचालकों का कहना है कि यह ट्रैकिंग रूट अभी ट्रैकर्स की नजरों से दूर हैं। यह नए ट्रैकिंग रूट विदेशियों सैलानियों को सबसे ज्यादा आकर्षित करेंगे। सैलानियों के आने से स्थानीय ग्रामीणों की आजीविका में सुधार होगा।
मुनस्यारी की PHOTOS… क्यों है मुनस्यारी खास? मुनस्यारी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक छोटा-सा हिल स्टेशन है, जो सी लेवल से लगभग 2,200 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है। यह जगह पंचचूली माउंटेन रेंज और नंदा देवी पर्वत के मनमोहक नजारों के लिए मशहूर है। मई-जून के महीनों में मुनस्यारी का मौसम काफी सुहावना होता है। इस समय यहां का तापमान 10°C से 25°C के बीच रहता है, जो घूमने और ट्रैकिंग के लिए परफेक्ट है। गर्मियों में यहां भीषण गर्मी नहीं होती, बल्कि ठंडी हवाएं और धूप का आनंद मिलता है। मुनस्यारी ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए स्वर्ग है। यहां से मिलम ग्लेशियर ट्रेक, खलिया टॉप ट्रेक और नामिक ग्लेशियर ट्रेक जैसे रोमांचक ट्रेक हैं। मई-जून में बर्फ पिघलने लगती है, जिससे ट्रेकिंग रास्ते साफ हो जाते हैं। मुनस्यारी के टॉप ट्रैकिंग स्पॉट खलिया टॉप- खलिया टॉप मुनस्यारी का एक लोकप्रिय टूरिस्ट स्पॉट है, जो सी लेवल से 3,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से पंचचूली और नंदा देवी के शानदार नजारे देखे जा सकते हैं। सुबह के समय यहां सूर्योदय का नजारा अद्भुत होता है। नंदा देवी मंदिर- यह प्राचीन मंदिर मां पार्वती को समर्पित है और मुनस्यारी से लगभग 3 किमी दूर स्थित है। यह उत्तराखंड के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है और काफी धार्मिक महत्व भी रखता है। थामरी कुंड- थामरी कुंड एक सुंदर झील है, जो मुनस्यारी से ट्रेकिंग करके पहुंची जा सकती है। इस झील का पानी नीला और स्वच्छ है, जो चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। बिर्थी फॉल्स- यह झरना मुनस्यारी से कुछ किलोमीटर दूर है और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक परफेक्ट जगह है। यहां पहुंचने के लिए छोटी ट्रैकिंग करनी पड़ती है, लेकिन यहां का नजारा इस मेहनत के लायक है। संचालक चंदन और मुकेश लस्पाल​​​​​​- रूटों को अभी तक बाहर के लोग नहीं देख पाए मुनस्यारी ​​​​​​​के नंदा देवी ईस्ट बेस कैंप तक 10 दिन की रोमांचक यात्रा से लौटे हिमालयन शेफर्ड और लास्पा अल्पाइन ट्रेल के संचालक चंदन और मुकेश लस्पाल ने बताया कि मुनस्यारी के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई ट्रैक्स हैं, जिन्हें अभी तक बाहर के लोग नहीं देख पाए हैं। उनकी टीम इन ट्रैक रूटों को खोलने के लिए प्रयास करेगी। उन्होंने बताया कि इनमें एक ट्रैक रूट क्वीरीजिमिया से कांगड़ीभेल है। इस ट्रैक रूट से क्वीरीजिमियां गांव के लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। इसके अलावा लास्पा गांव से सलांगधूरा के ट्रैक रूट को ओपन करने के प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि पंचाचूली बेस कैंप के आसपास धरतीधार सहित कई अन्य ट्रैकिंग रूट भी हैं आने वाले समय में इन ट्रैक रूटों से पर्यटक गुजरें इसके लिए रेकी की जाएगी। नये ट्रैक रूट खोजने की इसलिए पड़ रही जरूरत पिथौरागढ़ में कई ट्रैक रूट हैं। इनमें मिलम ग्लेशियर, नामिक ग्लेशियर, रालम ग्लेशियर, पंचाचूली बेस कैंप शामिल हैं। मिलम ग्लेशियर ट्रैकिंग में पहले 9 दिन का समय लगता था। इसके लिए मुनस्यारी से लीलम, बोगडियार, रिलकोट से मिलम पहुंचते थे। मिलम तक अब सड़क पहुंच गई है। ऐसे में यह विश्व प्रसिद्ध ट्रैकिंग रूट खत्म हो गया है। इसी तरह से नामिक गांव तक भी सड़क पहुंच गई है। मौजूदा समय में मुख्य रूप से नंदा देवी बेस कैंप, पंचाचूली बेस कैंप और रालम ग्लेशियर ट्रैक रूट ही मौजूद हैं। हर साल हजारों की संख्या में देशी विदेशी ट्रैकर इन रूटों में आते हैं। एक बार आ चुके ट्रैकरों को नया देखने को मिले इसके लिए नये ट्रैक रूट खोजे जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। ट्रैकिंग कराने वाले स्थानीय संचालकों का कहना है कि यदि नये ट्रैक रूट मिले तो विदेशी सैलानियों की संख्या भी बढ़ेगी। बेहद रोमांचक रही 17 सदस्यीय दल की 10 दिन की यात्रा हिमालयन शेफर्ड और लास्पा अल्पाइन ट्रेल ने संयुक्त रूप से मिलकर नंदा देवी ईस्ट बेस कैंप तक 10 दिन की यात्रा का आयोजन किया। इस अभियान में कुल 17 सदस्य शामिल थे, जिनमें स्लोवाकिया से आए चार अंतरराष्ट्रीय सदस्य भी थे। हिमालयन शेफर्ड के संचालक चंदन बताते हैं कि उनकी यह यात्रा बेहद रोमांचक रही। यहां केवल ट्रैकिंग ही नहीं होती बल्कि हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता को समझने का भी अवसर मिलता है। फ्लोरा फोना (हिमालयी क्षेत्र में मौजूद जीव जंतुओं) के बारे में पता चलता है। लास्पा गांव से हुई यात्रा की शुरुआत यात्रा संचालकों ने बताया कि उनकी यात्रा 3,300 मीटर की ऊंचाई पर बसे लास्पा गांव से हुई। इसके बाद टीम ने जोहार घाटी के कई दूरस्थ हिमालयी गांवों मर्तोली, ल्वा, पट्टा और नास्पनपट्टा से होते हुए अपनी यात्रा जारी रखी। इस दौरान क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और पारिस्थितिक विविधता की झलक देखने को मिली। इसके बाद उनका दल लगभग 4,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नंदा देवी ईस्ट बेस कैंप पहुंचा। यह बेहद रोमांचक ट्रेक रूट है। टीम में ये लोग थे शामिल बृजेश धर्मशक्तू, मुकेश लस्पाल, हेमराज पांगती, पवन कोरंगा, दीपक धर्मशक्तू, जगदीश भट्ट, हेमंत धमोट, शैलेन्द्र पांगती, कविंदर, जितेन्द्र, मनोज, त्रिलोक कोरंगा, गिरधर हरकोटिया, लक्ष्मण, मार्टिन,नादिया, कैटरीना, अली। कचरे का निपटारा भी जरूरी संस्था के सदस्यों का कहना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ट्रैकिंग के दौरान कूड़ा करकट के निपटारा का ध्यान रखना जरूरी होता है। यदि प्लास्टिक कचरा वहां पर रहेगा तो पर्यावरण काे नुकसान पहुंचेगा। इसलिए खाली पानी की बोतलें, पन्नियां वहां पर न छोड़कर अपने साथ नीचे लाने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए सभी पर्यटकों से भी आग्रह किया जाता है।

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