Kashmir में सामने आया क्रिकेट घोटाला, IHPL के फर्जी आयोजक फरार, खिलाड़ियों और होटल वालों को ठगा

Kashmir में सामने आया क्रिकेट घोटाला, IHPL के फर्जी आयोजक फरार, खिलाड़ियों और होटल वालों को ठगा
आपने वैसे तो तमाम तरह के घोटालों की खबर सुनी होगी लेकिन क्रिकेट घोटाला एकदम नये तरीके का घपला है। यह मामला सामने आया है जम्मू-कश्मीर से जहां प्रशासन ने बताया है कि मोहाली स्थित कथित आयोजकों के भागने के बाद प्राइवेट Indian Heaven Premier League (IHPL) बीच में ही ठप्प हो गयी। हम आपको बता दें कि श्रीनगर के बक्शी स्टेडियम में 25 अक्टूबर से शुरू हुई यह T20 लीग आठ दिन के भीतर ही बंद हो गयी। श्रीनगर में आयोजित लगभग 10 मैचों के बाद आयोजक रविवार की रात आयोजनों को छोड़कर चले गए और लगभग 40 स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों, अंपायर्स और होटल स्टाफ पेमेंट के बिना फंसे रहे।
श्रीनगर पुलिस ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। लीग का आयोजन वेबसाइट के मुताबिक Yuva Society नामक गैर-लाभकारी संस्था द्वारा बताया गया था, जबकि स्थानीय प्रशासन और स्पोर्ट्स काउंसिल के कुछ अधिकारी आयोजन को समर्थन देते दिखे। डिवीजनल कमिश्नर ने आयोजन की तैयारियों पर 22 अक्टूबर को बैठक भी की थी और स्पोर्ट्स काउंसिल के प्रमोशनल वीडियोज सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे। आयोजकों के भागने के बाद होटल, स्टाफ और खिलाड़ियों के बकाये के भुगतान नहीं हुए। इस पर इंग्लैंड की अंपायर Mellisa Juniper ने स्पष्ट कहा कि दोष आयोजकों पर है। इस मुद्दे पर विपक्षी दलों और स्थानीय नेताओं ने सरकार से जवाब मांगते हुए उच्चस्तरीय जांच और तुरंत मुआवजे की मांग की है।

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देखा जाये तो IHPL का अचानक पतन सिर्फ एक प्राइवेट स्पोर्ट्स कंपनी का घपला नहीं है; यह जम्मू-कश्मीर के सार्वजनिक विश्वास, प्रशासनिक सतर्कता और खेल-इकोसिस्टम की साख पर सीधा प्रहार है। जब राज्य मशीनरी किसी आयोजन के साथ खड़ी दिखती है, तो उसका यह कर्तव्य बनता है कि आयोजकों की पृष्ठभूमि, वित्तीय क्षमता और गारंटी की जाँच कठोरता से की जाए। यहाँ जो हुआ वह इन मूलभूत तक़नीकी नियमों की उपेक्षा का फल है।
पहला प्रश्न यही खड़ा होता है: किन शर्तों पर सरकारी संस्थाओं— डिवीजनल कमिश्नर कार्यालय और स्पोर्ट्स काउंसिल ने इस आयोजन को प्रोत्साहित किया? प्रचारात्मक वीडियोज और आधिकारिक बैठकों का मतलब यह होना चाहिए कि आयोजक पारदर्शी, भुगतान-सक्षम और जवाबदेह होंगे।
दूसरा सवाल यह है कि खेल के नाम पर आए विदेशी खिलाड़ियों, अंपायर्स और स्थानीय कामगारों के साथ हुए आर्थिक विश्वासघात का राजनैतिक असर भी हो सकता है। यह घटनाक्रम कश्मीर की छवि के लिए हानिकारक है। इससे निवेशकों और खेलों के आतिथ्य की विश्वसनीयता को खरोंच पहुँच सकती है। विपक्षी राजनीतिक दलों का कठोर रुख और हाई-लेवल जांच की मांग स्वाभाविक है। कुल मिलाकर देखें तो यह प्रकरण इस बात की जरूरत दर्शाता है कि खेल आयोजनों के लिए स्पष्ट मंजूरी प्रक्रिया, वित्तीय गारंटी, बीमा और स्थानीय भागीदारों की पृष्ठभूमि की अनिवार्य जाँच को नियमों में बदलना होगा। 

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