जमुई के लक्ष्मीपुर प्रखंड स्थित चिंवेरिया गांव के 82 वर्षीय किसान अर्जुन मंडल औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए एक मिसाल बन चुके हैं। उन्होंने 1970 से दुर्लभ औषधीय पौधों को बचाने और बढ़ाने का मिशन शुरू किया था। इसकी शुरुआत उन्होंने महज 10 डिसमिल जमीन से की थी, जिसे अब वे 6 एकड़ खेत में बड़े पैमाने पर औषधीय पौधों की खेती के रूप में विस्तारित कर रहे हैं। अर्जुन मंडल के बगीचे में वर्तमान में 200 से अधिक प्रकार के औषधीय पौधे मौजूद हैं, जिनमें 50 से अधिक विलुप्त प्रजातियां शामिल हैं। इनमें मालकांगनी,गरुड़तरु, लक्ष्मीतरु,नील,दमबेल,बाकस,गोरखमुंडी,उल्टाकमल, चारु पत्रक,कुचला,दर्दमेडा,अपरस,दहीपलास,ईश्वर फूल, गुलमार और सफेद मुसली जैसी बेहद दुर्लभ प्रजातियां प्रमुख हैं। इन पौधों की मांग बिहार सहित कई अन्य राज्यों में भी है। राष्ट्रीय स्तर पर मिल चुका सम्मान उनके इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए अर्जुन मंडल को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। 12 सितंबर 2023 को राष्ट्रपति द्वारा उन्हें औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया गया था। इससे पहले, वर्ष 2013 में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें श्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित किया था। बिहार सरकार भी उन्हें एक लाख रुपए और प्रशस्ति पत्र दे चुकी है। जंगलों में घूम-घूमकर औषधीय पौधों की करते है पहचान अर्जुन मंडल बताते हैं कि उन्होंने 1969 में इंटरमीडिएट पास करने के बाद भागलपुर से होम्योपैथी में डिप्लोमा किया था।इसके बाद, 1970 से वे जमुई के जंगलों में घूम-घूमकर दुर्लभ औषधीय पौधों की पहचान करते, खोजते और उन्हें अपने बगीचे में संरक्षित करते रहे। आज भी वे गांव-गांव जाकर लोगों को मुफ्त में पौधे वितरित करते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है कि हर घर और हर गांव में कम से कम कुछ औषधीय पौधे अवश्य होने चाहिए।वे ‘नो लॉस, नो प्रॉफिट’की सोच के साथ यह कार्य करते हैं। उनका मानना है कि औषधीय पौधों की खेती किसानों के लिए आय का एक बेहतर स्रोत बन सकती है। वे सुझाव देते हैं कि जो किसान केवल गेहूं-धान पर निर्भर रहते हैं, वे अपनी आय बढ़ाने के लिए औषधीय खेती की ओर भी रुख कर सकते हैं। अर्जुन मंडल के पौधे गुजरात कृषि केंद्र, भागलपुर कृषि केंद्र, देवघर सहित कई जिलों और राज्यों में भेजे जाते हैं, जहां से उन्हें लगातार सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। जमुई के लक्ष्मीपुर प्रखंड स्थित चिंवेरिया गांव के 82 वर्षीय किसान अर्जुन मंडल औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए एक मिसाल बन चुके हैं। उन्होंने 1970 से दुर्लभ औषधीय पौधों को बचाने और बढ़ाने का मिशन शुरू किया था। इसकी शुरुआत उन्होंने महज 10 डिसमिल जमीन से की थी, जिसे अब वे 6 एकड़ खेत में बड़े पैमाने पर औषधीय पौधों की खेती के रूप में विस्तारित कर रहे हैं। अर्जुन मंडल के बगीचे में वर्तमान में 200 से अधिक प्रकार के औषधीय पौधे मौजूद हैं, जिनमें 50 से अधिक विलुप्त प्रजातियां शामिल हैं। इनमें मालकांगनी,गरुड़तरु, लक्ष्मीतरु,नील,दमबेल,बाकस,गोरखमुंडी,उल्टाकमल, चारु पत्रक,कुचला,दर्दमेडा,अपरस,दहीपलास,ईश्वर फूल, गुलमार और सफेद मुसली जैसी बेहद दुर्लभ प्रजातियां प्रमुख हैं। इन पौधों की मांग बिहार सहित कई अन्य राज्यों में भी है। राष्ट्रीय स्तर पर मिल चुका सम्मान उनके इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए अर्जुन मंडल को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। 12 सितंबर 2023 को राष्ट्रपति द्वारा उन्हें औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया गया था। इससे पहले, वर्ष 2013 में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें श्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित किया था। बिहार सरकार भी उन्हें एक लाख रुपए और प्रशस्ति पत्र दे चुकी है। जंगलों में घूम-घूमकर औषधीय पौधों की करते है पहचान अर्जुन मंडल बताते हैं कि उन्होंने 1969 में इंटरमीडिएट पास करने के बाद भागलपुर से होम्योपैथी में डिप्लोमा किया था।इसके बाद, 1970 से वे जमुई के जंगलों में घूम-घूमकर दुर्लभ औषधीय पौधों की पहचान करते, खोजते और उन्हें अपने बगीचे में संरक्षित करते रहे। आज भी वे गांव-गांव जाकर लोगों को मुफ्त में पौधे वितरित करते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है कि हर घर और हर गांव में कम से कम कुछ औषधीय पौधे अवश्य होने चाहिए।वे ‘नो लॉस, नो प्रॉफिट’की सोच के साथ यह कार्य करते हैं। उनका मानना है कि औषधीय पौधों की खेती किसानों के लिए आय का एक बेहतर स्रोत बन सकती है। वे सुझाव देते हैं कि जो किसान केवल गेहूं-धान पर निर्भर रहते हैं, वे अपनी आय बढ़ाने के लिए औषधीय खेती की ओर भी रुख कर सकते हैं। अर्जुन मंडल के पौधे गुजरात कृषि केंद्र, भागलपुर कृषि केंद्र, देवघर सहित कई जिलों और राज्यों में भेजे जाते हैं, जहां से उन्हें लगातार सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती हैं।


