हजारीबाग मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर कटकमदाग प्रखंड के खपरियावां गांव में स्थित ऐतिहासिक नृसिंह स्थान मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पारंपरिक मेले का आयोजन किया गया। लगभग 450 वर्षों से आयोजित हो रहा यह मेला धार्मिक आस्था, लोक संस्कृति और कृषि परंपरा का प्रतीक है। स्थानीय लोग इसे ‘केतारी मेला’ के नाम से भी जानते हैं। मंदिर का इतिहास 1632 ईस्वी में पंडित दामोदर मिश्र द्वारा इसकी स्थापना से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पंडित मिश्र को स्वप्न में नेपाल के काक भूसारी पर्वत से भगवान नृसिंह की प्रतिमा लाने का आदेश मिला था। उन्होंने काले ग्रेफाइट पत्थर से बनी प्रतिमा प्राप्त कर खपरियावां में स्थापित की, जिसके बाद यह मंदिर ‘नृसिंह स्थान’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।मंदिर का गर्भगृह विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जहां भगवान विष्णु और भगवान शिव एक साथ विराजमान हैं। यह अद्वितीय संयोग वैष्णव और शैव भक्तों को समान रूप से आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में भगवान सूर्य देव, नारद, शिव-पार्वती, नवग्रह और हनुमान जी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। दूर-दराज से श्रद्धालु यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए आते हैं मुख्य पुजारी उपेंद्र मिश्र के अनुसार, नृसिंह स्थान को मनोकामना पूर्ण करने वाला तीर्थ स्थल माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा पर दूर-दराज से श्रद्धालु यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मेले का किसानों से गहरा संबंध है। चार शताब्दियों से किसान यहां गन्ना (ईख) बेचने के लिए एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद ईख को घर ले जाने से समृद्धि आती है। इसी कारण यह मेला ‘केतारी मेला’ के नाम से भी जाना जाता है। नृसिंह स्थान मंदिर झारखंड का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार पाषाण रूप में स्थापित है। यह स्थल केवल आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि लोक परंपरा और कृषि संस्कृति के जीवंत संगम का प्रतीक भी है।


