मूवी रिव्यू- 120 बहादुर:साहस, जज्बा और रोमांच से भरपूर कहानी दर्शक को बांधती है, मेजर शैतान सिंह भाटी के किरदार में प्रभावशाली लगे फरहान

फरहान अख्तर की फिल्म ‘120 बहादुर’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। यह फिल्म 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांग ला की लड़ाई की वास्तविक कहानी पर आधारित है। इस फिल्म में 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के 120 बहादुर भारतीय सैनिकों के बलिदान और साहस की कहानी को दिखाया गया है। जिन्होंने चीनी सेना की भारी टुकड़ियों का बहादुरी से सामना किया था। रजनीश ‘रैजी’ घई के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म का निर्माण रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर के एक्सेल एंटरटेनमेंट बैनर तले किया है। इस फिल्म में फरहान ने मेजर शैतान सिंह भाटी का किरदार निभाया है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 17 मिनट है। इस फिल्म को दैनिक भास्कर ने 5 में से 4.5 स्टार की रेटिंग दी है। फिल्म की कहानी क्या है? फिल्म की शुरुआत अमिताभ बच्चन की मजबूत, गंभीर और भावनात्मक वॉयसओवर से होती है, जो आपको सीधे उन दिनों में ले जाता है जब दो देशों की दोस्ती विश्वासघात में बदल चुकी थी और चीन ने बिना चेतावनी हमला बोला था। उसी विश्वासघात की दरारों में से यह कहानी जन्म लेती है। फिल्म की कहानी 1962 के भारत–चीन युद्ध की उस ऐतिहासिक लड़ाई पर आधारित है, जहां चुसुल सेक्टर में तैनात चार्ली कंपनी , जिसे अहीर कहा जाता था, अपनी पोस्ट की रक्षा कर रही थी। कंपनी की कमान मेजर शैतान सिंह भाटी के पास थी, और उनके साथ सिर्फ 120 भारतीय बहादुर मौजूद थे। इसी दौरान चीन की सेना बेहद बड़ी तादाद में भारतीय पोस्ट की ओर बढ़ती है और बिना किसी चेतावनी के हमला कर देती है। मुकाबला एकतरफा दिखने के बावजूद अहीर इलाके की समझ, ऊंचाई की पोजिशन और अपने अनुशासन के दम पर डटकर जवाब देते हैं। दुश्मन लगातार वेव में हमला करता है, लेकिन 120 जवान आखिरी दम तक अपनी चौकी बचाने की लड़ाई लड़ते हैं। फिल्म साफ तौर पर दिखाती है कि कैसे अत्यधिक संख्या में घिरे होने के बावजूद चार्ली कंपनी ने वीरता, अनुशासन और जज्बे का ऐसा उदाहरण पेश किया जो इतिहास में दर्ज हो गया। स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है? फरहान अख्तर ने मेजर शैतान सिंह भाटी के रूप में शांत दृढ़ता और गहरी तीव्रता का बेहतरीन मेल दिखाया है। उनका संयमित गुस्सा, नेतृत्व और भावनात्मक वजन,सब कुछ सीन को प्रभावशाली बनाता है। वह अहीर बॉयज के कमांडर के रूप में पूरी तरह विश्वसनीय लगते हैं। फिल्म की आत्मा बनते हैं स्पर्श वालिया, जो सिपाही राम चन्द्र यादव के रूप में शुरू से अंत तक सबसे बड़ा सरप्राइज साबित होते हैं। उनकी थकान, डर, उम्मीद और जज्बे का असर इतना असली है कि दर्शक तुरंत उनसे जुड़ जाते हैं, और क्योंकि कहानी उन्हीं की नजर से आगे बढ़ती है, उनका प्रदर्शन पूरी फिल्म को गहराई देता है। राशि खन्ना अपने सीमित, लेकिन भावनात्मक किरदार में गर्मजोशी लाती हैं, जबकि विक्की आहूजा और बाकी सपोर्टिंग कास्ट ने युद्ध की गंभीरता और सैनिकों की मानवीय कमजोरी को विश्वसनीय तरीके से स्क्रीन पर उतारा है। फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पहलू कैसा है? निर्देशक रजनीश ‘रजी ’ घोष ने 1962 की इस ऐतिहासिक लड़ाई को सरल, साफ और भावनात्मक अंदाज में पेश किया है। अमिताभ बच्चन के प्रभावशाली वॉयसओवर से शुरुआत होते ही फिल्म माहौल बना लेती है। लोकेशन, आर्ट डायरेक्शन और युद्ध के पल काफी प्रामाणिक महसूस होते हैं। कैमरा वर्क लड़ाई की अफरा-तफरी और सैनिकों के डर-जज्बे को अच्छी तरह पकड़ता है। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? बैकग्राउंड स्कोर दमदार है और कई दृश्यों में रोमांच बढ़ाता है। गाने उतने असरदार नहीं हैं, लेकिन फिल्म की कहानी के साथ पूरी तरह से मेल खाते हैं। और इसमें देशभक्ति का जज्बा देखने को मिलता है। फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं? 120 बहादुर अपने इमोशन, रिसर्च और रियल हीरोज के सम्मान की वजह से दिल तक पहुंचती है। कहानी सीधी है, अभिनय मजबूत है, और निर्देशन इसे गरिमा देता है। भारत–चीन युद्ध का जंग भारत के लिए बेशक दर्दनाक हार साबित हुई, लेकिन इसी हार के बीच एक ऐसी जीत भी छिपी थी जिसने पूरी दुनिया को भारतीय सैनिकों के साहस और जज्बे का एहसास कराया। यह फिल्म सीख देती है कि असली जीत हिम्मत और देशभक्ति की होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *